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मेरा परिचय
Posted फ़रवरी 18, 2009
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मैं मिथिलेश वामनकर, उम्र २७ साल, पेशे से शासकीय सेवक हूं । मेरा जन्म म.प्र. राज्य के बैतूल जिले के गोराखार नामक एक आदिवासी बहुल गाँव में जुलाई १९८१ में हुआ। बचपन गाँव की धूल मिट्टी खेलते और गाँव के एकमात्र प्रायमरी स्कूल में बेंत और तमाचों के बीच बीता। पापा जब बस्तर के स्कूल मास्टर से डिप्टी कलेक्टर बने तो शहर का मुंह देखना नसीब हुआ। इसके बाद पापा के ट्रांसफ़रों में ही मिडिल और हाईस्कूल बीत गये। |
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ये पूरा समय छत्ती्सगढ़ और बस्तर में बीता और मैं “छत्तीसगढ़ियां सबले बड़िया” बनता रहा। इधर कालेज आया तो बी.एससी. की पढ़ाई में मन नहीं लगा और तीन साल की स्नातक डिग्री पंचार्षीय–कार्यक्रम के तहत पूरी हुई। मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ विभाजन के बाद मुझें भारत-विभाजन का दर्द समझ आया। हम छत्तीसगढ़ छोड़ मध्य-प्रदेश आ गए। हां इस दर्मियान एक सॄजनात्मक कार्य अवश्य करता रहा कि एक उपन्यास, बीसियों कहानियां और सैकड़ों गज़ले कवितायें लिख गया और इंटरनॆट का चस्का लगा तो कुछ दिन वेब-डिजाइनिंग भी की। फ़िर दिमाग दूसरी तरफ़ लगा और पी.एस.सी. की तैयारी में लग गया। पी.एस.सी और ब्लॊगिंग साथ-साथ चलती रही। पता नहीं कैसे ? पर पी.एस.सी. मे सफ़ल हुआ और अधिकारी बन गया।
अब शासकीय सेवा के साथ ब्लॊगिंग, गीत, गज़ल, कविता, कहानियां आदि लिख मारता हूं या औपचारिक शब्दों में कहें तो साहित्य सेवा भी कर लेता हूँ। इधर ज़िन्दगी को समझने, उधेड़ने,, बुनने, कुछ पाऊं तो उसे गुनने, अतीत में झाकनें और कल्पनाओं की उड़ान भरने के अलावा कोई खास काम नहीं करता। अभी भोपाल मे रह रहा हूँ और यही सब करने या न करने का भ्रम पाले बैठा हूँ।
अतीत की स्मॄतियों के छालों और फ़ूलों में सिमटकर, भविष्य के चिंतन में किसी दरवेश सा वर्तमान को सहेज-संजोकर खुश रहने की कोशिश में लगा हूँ। कभी खुद के तो कभी सब के बारे में सोच लेता हूँ। मैं हूँ। मैं ज़िंदा हूँ।……..हम ज़िंदा है। सचमुच हम ज़िंदा है ये सिद्ध करने की एक और नाकाम कोशिश में लग जाता हूँ। बस इतनी सी बातें है मेरे बारे में। कम से कम अब तक तो खुद को इतना ही समझ पाया हूँ। |
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